क्यों मनाया जाता है छठ महापर्व, क्या है इसके पीछे का इतिहास

हिंदुओं के सबसे बड़े पर्व दीपावली को त्योहारों की माला माना जाता है. पांच दिन तक चलने वाला ये पर्व सिर्फ भैयादूज तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह पर्व छठ पूजा (Chhath Puja) तक चलता है. उत्तर प्रदेश और खासकर बिहार में मनाया जाने वाला ये पर्व अपने आप में काफी खास है. इसे पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है. छठ पूजा चार दिन तक चलती है. सूर्य देव (Surya Dev) की आराधना और संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए समर्पित छठ पूजा हर वर्ष का​र्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होती है. 
इस वर्ष छठ पूजा 20 नवंबर यानी शुक्रवार को है.

छठ पूजा का प्रारंभ दो दिन पूर्व चतुर्थी तिथि को नहाय खाय से होता है, फिर पंचमी को लोहंडा और खरना होता है. उसके बाद षष्ठी तिथि को छठ पूजा होती है, जिसमें सूर्य देव को शाम का अर्घ्य अर्पित किया जाता है. इसके बाद अगले दिन सप्तमी को सूर्योदय के समय में उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं और फिर पारण करके व्रत को पूरा किया जाता है. नहाय-खाय से लेकर उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक चलने वाले इस पर्व का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है.छठ पर्व कैसे शुरू हुआ इसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं. पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है. कहते हैं राजा प्रियंवद की कोई संतान नहीं थी. तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी. इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वह पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ. प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे. उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वह सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं. उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा.

सीता जी ने 6 दिनों तक सूर्यदेव की उपासना की

राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है. इस कथा के अलावा एक कथा राम-सीता जी से भी जुड़ी हुई है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब राम और सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला किया था. पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया. मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल छिड़क कर उन्हें पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया. उस समय सीता जी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर 6 दिनों तक भगवान सूर्यदेव की पूजा की थी.

द्रौपदी ने भी छठ व्रत रखा था

एक और मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी. इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी. कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वह रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे. सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने. आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है. छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है. इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था. इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था. लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है. इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई है

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